यूँ ही नहीं हारे थे हम
जिन्होंने हमें हराया
वे हमारी ही ओर थे
वे देवतुल्य आजानबाहु
उन्नतग्रीव प्रशस्तललाट
पानी पर चलने वाले
हवा में उड़ने वाले
टप टप टपकता था ज्ञान
जिनके भव्य सुमुख से
उन्होंने हमें बताया
ऐसे जीना है जीवन को
ऐसे करना है प्रेम
ऐसे लिखनी है कविता
ऐसे सुननी है कविता
ऐसे धुननी है कविता
उन्होंने हमें सिखाया
कैसे गले लगाना है शत्रुओं को
कैसे घोंपना है छुरा दोस्तों की पीठ में
उन्होंने प्रयोगात्मक तरीके से करके दिखाया
कि रक्त भरे हाथ भी कैसे लग सकते हैं
शोभनीय और स्वच्छ
वे किसी उदात्त प्रवचनकर्ता की तरह बोलते थे
और हम उपदेश की तरह उन पर करते थे अमल
अब आप सबको लगता होगा कि अहमक हैं हम
भला इतने शातिर तरीकों के बाद भी कोई हार सकता है
लेकिन सच तो यह है कि हम शुरुआत में ही हार गए थे
जब उन्होंने कहा
कि वत्स! जब भी हत्या करने के बाद घर लौटो
हाथ धोने से पहले रक्त सने हाथों से एक कविता लिखो
और हमने नतशिर होकर उसे मान लिया था
आखिर
यूँ ही नहीं हारे थे हम!